लेफ्टिनेंट विजय सिंह सिसोदिया : साधारण परिवार से भारतीय सेना में अधिकारी तक का प्रेरक सफर
सुसनेर l मध्य प्रदेश के जनपद आगर मालवा की तहसील सुसनेर के निवासी लेफ्टिनेंट विजय सिंह सिसोदिया ने भारतीय सेना में अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त कर क्षेत्र, समाज और प्रदेश का नाम गौरवान्वित किया है। साधारण परिवार से निकलकर सेना में कमीशन प्राप्त करने वाले वे अपनी संपूर्ण तहसील के एकमात्र युवा हैं, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
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कठिन परिस्थितियों में पला-बढ़ा एक जुझारू व्यक्तित्व
सेना में प्रारंभिक सेवा से अधिकारी बनने तक का सफर
उन्होंने भारतीय सेना की ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स में क्लर्क के रूप में अपनी सेवा शुरू की। दफ्तर संबंधी कार्यों के बीच भी उनके मन में अधिकारी बनकर राष्ट्र सेवा का सपना सदैव जीवित रहा।
अपने सीमित समय में अध्ययन जारी रखते हुए उन्होंने Service Selection Board (SSB) की चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया की तैयारी की और निरंतर प्रयासों के बाद सफलता प्राप्त की।
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SSB – धैर्य और नेतृत्व की कठोर परीक्षा
SSB को भारतीय सेना में अधिकारी चयन की सबसे कठिन प्रक्रिया माना जाता है। मानसिक क्षमता, नेतृत्व कौशल, शारीरिक दक्षता और व्यक्तित्व की गहन परीक्षा के बीच लेफ्टिनेंट सिसोदिया ने सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद स्वयं को सिद्ध किया।
उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ निश्चय के सामने कोई बाधा बड़ी नहीं होती।
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IMA देहरादून में कठोर प्रशिक्षण
SSB में सफलता के बाद उनका चयन प्रतिष्ठित भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून में हुआ। IMA का शारीरिक, मानसिक और नैतिक दृष्टि से कठिन प्रशिक्षण उनके व्यक्तित्व को और अधिक मजबूत और परिपक्व बनाता गया।
प्रत्येक चुनौतीपूर्ण चरण में उन्होंने अपनी काबिलियत सिद्ध की।
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पाइपिंग सेरेमनी – गौरव व भावनाओं का क्षण
प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद आयोजित पाइपिंग सेरेमनी में विजय सिंह सिसोदिया को लेफ्टिनेंट की रैंक प्रदान की गई। इस अवसर पर उनकी पत्नी श्रीमती आयुषी तथा उनके माता-पिता उपस्थित थे।
कंधों पर सितारे सजाने का वह क्षण पूरे परिवार और क्षेत्र के लिए गर्व, सम्मान और भावनाओं से जुड़ा अविस्मरणीय पल बन गया।
वे वर्तमान में पूर्ण निष्ठा और उत्तरदायित्व के साथ राष्ट्र सेवा में जुटे हुए हैं।
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युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
लेफ्टिनेंट विजय सिंह सिसोदिया की कहानी यह सिद्ध करती है कि—
“संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि दृढ़ निश्चय की कमी सफलता में बाधा बनती है।”
एक साधारण परिवार से उठकर भारतीय सेना के अधिकारी पद तक पहुँचना उनके परिश्रम, संघर्ष, आत्मअनुशासन और राष्ट्रभक्ति का उज्ज्वल उदाहरण है।
उनकी उपलब्धि न केवल क्षेत्र का गौरव बढ़ाती है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि निरंतर प्रयास और सही दिशा व्यक्ति को किसी भी लक्ष्य तक पहुँचा सकते हैं।
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