आज भी श्रद्धा का केंद्र है अतिप्राचीन नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, देवी अहिल्याबाई ने कराई थी स्थापना

राजेश माली सुसनेर

आज भी श्रद्धा का केंद्र है अतिप्राचीन नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, देवी अहिल्याबाई ने कराई थी स्थापना

सुसनेर। नगर से तीन किलोमीटर दूर एक ऐसा अतिप्राचीन महादेव मंदिर हैं, जिसकी स्थापना देवी अहिल्याबाई ने कराई थी। प्राकृतिक सुंदरता के बीच इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है।

सुसनेर में इंदौर-कोटा राजमार्ग से करीब तीन किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में भोलेनाथ का अति प्राचीन मंदिर है। श्रावण मास के चलते इन दिनों महादेव का ये नीलकंठेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना है। कहा जाता है कि इंदौर रियासत की महारानी देवी अहिल्याबाई ने इस मंदिर की स्थापना कराई थी. प्राकृतिक सुंदरता के बीच इस मंदिर में आने वाले हर भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। सुसनेर से तीन किलोमीटर दूर मोरूखेड़ी गांव की प्राकृतिक वादियों के बीच स्थित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के पास ही एक झरना है, जिसे क्षेत्रवासी आकली की धरड़ नाम से जानते हैं। हर साल यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं।

*पुष्पों का श्रृंगार मोह रहा भक्तों का मन*

पूरे श्रावण मास मंदिर में रोजाना नीलकंठेश्वर महादेव का महारूद्राभिषेक करने के बाद पुजारी कनेर के पीले फूलों से महादेव का आकर्षक श्रृंगार करते हैं, जो यहां आने वाले श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। पुष्पों से किया गया ये श्रृंगार बहुत ही सुंदर और आकर्षक होता है, जो यहां आने वाले भक्तों का मनमोह लेता है। अतिप्राचीन इस मंदिर में ग्राम आकली ओर लटुरी गुर्जर के मोहनलाल सहित चार व्यक्तियों द्वारा पिछले 18 सालों से निशुल्क सेवाएं दी जा रही हैं। वे मंदिर में आने-जाने वाले श्रद्धालुओं के ठरहने और भोजन-पानी की सेवा में मदद करते हैं। इसके अलावा उन्होंने मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा भी लिया है।

*18 लाख की लागत से हुआ मंदिर का जीर्णोद्धार*

देवी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित इस मंदिर का जीर्णोद्धार पूर्व विधायक संतोष जोशी ने कराया था. जानकारी के मुताबिक पर्यटन विभाग ने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 18 लाख की राशि स्वीकृत की थी। जीर्णोद्धार के बाद मंदिर ने एक नया रूप ले लिया है। मंदिर में धर्मशाला का निर्माण भी कराया गया है, जहां श्रृद्धालु अपने परिवार के साथ पिकनिक जैसे आयोजन भी करते हैं। यही कारण है कि आज यह मंदिर एक पिकनिक स्पॉट बना हुआ है।

*आस्था जगाने वाले गुरूजी की लगी है प्रतिमा*

इस मंदिर के प्रति क्षेत्रवासीयो में आस्था जगाने वाले गुरूजी चतुर्भुज दीक्षित की प्रतिमा भी मंदिर परिसर में लगी है। 1992 में गुरूजी का मंदिर में आगमन हुआ था, उस समय मंदिर जीर्णशीर्ण हालत में था। गुरूजी ने आसपास के सभी गांवों में भ्रमण कर मंदिर के प्रति गहरी आस्था जगाई थी। उसके बाद से ही इस मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा हुआ है।

चित्र 1 : अतिप्राचीन मोरुखेड़ी मन्दिर।

चित्र 2 : देवी अहिल्याबाई द्वारा स्थापित श्री नीलकंठेश्वर महादेव।

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