घरेलू हिंसा अधिनियम या सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण संबंधी आवेदनों की सुनवाई करने वाली अदालतों को विवाह की वैधता पर विचार करने की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

इरफ़ान अंसारी SJ न्यूज़ एमपी उज्जैन

घरेलू हिंसा अधिनियम या सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण संबंधी आवेदनों की सुनवाई करने वाली अदालतों को विवाह की वैधता पर विचार करने की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
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By – Hemant Wadia, Advocate , Ujjain

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कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि अदालतों को घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 की धारा 12 के तहत गुजारा भत्ता के आवेदनों पर विचार करते समय विवाह की वैधता पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

कलाबुरगी बेंच में बैठे जस्टिस एस राचैया की सिंगल जज बेंच ने ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की, जिसमें याचिकाकर्ता के पति को भरण-पोषण के रूप में प्रतिमाह 3,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

अपीलीय अदालत मामले पर फिर से पुनर्विचार करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में विफल रही कि वह प्रतिवादी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। इस प्रकार, अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले पति द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली और भरण-पोषण का आदेश रद्द कर दिया।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि अपीलीय अदालत ने विवाह की वैधता या अन्यथा तय करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र को पार करके त्रुटि की। याचिकाकर्ता के पास चुनावी मतदाता पहचान पत्र है, जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि प्रतिवादी याचिकाकर्ता का पति है।

रिकॉर्ड देखने पर पीठ ने कहा कि अपीलीय अदालत को याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह की वैधता पर विचार नहीं करना चाहिए, जब तक कि प्रतिवादी द्वारा उपयुक्त न्यायालय के समक्ष विवाह की वैधता को चुनौती नहीं दी जाती और सक्षम द्वारा इसे रद्द नहीं कर दिया जाता। न्यायालय को ऐसा आदेश पारित करने का अधिकार है।
यह देखा गया,

“अधिनियम की धारा 12 के तहत या सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण मामलों से निपटने के दौरान अदालतों को विवाह की वैधता में नहीं जाना चाहिए। हालांकि, अदालत पत्नी के सबूतों पर विचार कर सकती है कि क्या वह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है या नहीं।”

इसमें कहा गया,

“एक बार जब ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की सराहना की और भरण-पोषण का आदेश पारित किया तो अपीलीय अदालत या तो इसे संशोधित कर सकती है या अगर यह पाया जाता है कि पत्नी खुद का भरण-पोषण करने में सक्षम है तो उसे अलग कर सकती है। यदि अपीलीय न्यायालय द्वारा विवाह की वैधता या अन्यथा के संबंध में कोई आदेश पारित किया जाता है तो यह उसके अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करता है।

केस टाइटल: शरणवा @कस्तूरी बनाम शिवप्पा

केस नंबर: क्रिमिनल रिवीजन पेटिशन नंबर 200044/2018

साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 186/2023

आदेश की तिथि: 18-04-2023

प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता की ओर से महंतेश पाटिल और प्रतिवादी की ओर से रत्ना एन शिवयोगीमठ।

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