कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर के निर्देशों के बाद दमोह में खाद्य सुरक्षा को लेकर हुई ‘कार्रवाई’ पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बुधवार को खाद्य सुरक्षा जांच दल ने शहर की नामी थोक किराना दुकानों पर औचक निरीक्षण तो किया, लेकिन जिस तरह से यह कार्रवाई की गई, उस पर कहीं न कहीं टीम की गंभीरता और कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठ रही

दमोह से अमर चौबे।

कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर के निर्देशों के बाद दमोह में खाद्य सुरक्षा को लेकर हुई ‘कार्रवाई’ पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बुधवार को खाद्य सुरक्षा जांच दल ने शहर की नामी थोक किराना दुकानों पर औचक निरीक्षण तो किया, लेकिन जिस तरह से यह कार्रवाई की गई, उस पर कहीं न कहीं टीम की गंभीरता और कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठ रही हैं। क्या यह महज कलेक्टर के दबाव में की गई एक ‘खानापूर्ति’ थी?

जानकारी के अनुसार, खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के अंतर्गत जांच दल ने बकौली चौराहा स्थित प्रतिष्ठित सेठ प्यारेलाल एंड संस और प्रमोद किराना भंडार का निरीक्षण किया। चौंकाने वाली बात यह है कि दल ने इन विशाल थोक प्रतिष्ठानों से मात्र तीन नमूने ही एकत्रित किए। सेठ प्यारेलाल एंड संस से केवल पतंजलि ब्रांड के हल्दी पाउडर और कच्ची घानी सरसों तेल के नमूने लिए गए, जबकि प्रमोद किराना भंडार से महज पुष्प ब्रांड के अचार मसाले का नमूना जांच हेतु उठाया गया।

प्रश्न यह उठता है कि क्या इन बड़ी थोक दुकानों पर केवल ये तीन उत्पाद ही जांच योग्य थे? क्या इतने बड़े परिसरों में बिकने वाले सैकड़ों अन्य खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर कोई संदेह नहीं था? सूत्रों का कहना है कि इतने कम नमूने लेना कहीं न कहीं जांच दल की ‘सुविधाजनक कार्रवाई’ को दर्शाता है। यह भी सवाल है कि क्या टीम ने किसी विशिष्ट शिकायत के आधार पर इन ब्रांड्स को ही निशाना बनाया, या यह महज एक औपचारिकता पूरी करने का तरीका था?

खाद्य सुरक्षा जांच दल ने यह तो पाया कि दोनों प्रतिष्ठानों में फूड लाइसेंस की प्रति स्पष्ट रूप से प्रदर्शित थी, लेकिन केवल लाइसेंस की जांच करना ही क्या खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का एकमात्र पैमाना है? ये नमूने अब राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला, भोपाल भेजे गए हैं। हालांकि, रिपोर्ट आने और वैधानिक कार्यवाही होने में लगने वाले समय को देखते हुए, इस पूरी कवायद का उद्देश्य और परिणाम कितना प्रभावी होगा, यह भविष्य के गर्भ में है।

शहर में लंबे समय से मिलावटखोरी की शिकायतें आम हैं। ऐसे में, जब कलेक्टर स्वयं कड़े निर्देश दे रहे हैं, तब खाद्य सुरक्षा दल से और अधिक व्यापक एवं सख्त कार्रवाई की उम्मीद की जाती है। महज इक्का-दुक्का नमूने लेकर लौटना कहीं न कहीं इस संवेदनशील विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है और आम जनता में यह संदेश भी देता है कि शायद ‘बड़ी मछलियां’ अभी भी उनकी पकड़ से दूर हैं।

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