मोहन शर्मा म्याना

सिस्टम ने ली एक जान,नहीं मिला समय पर उपचार, न मिल सकी रैफर करने एंबुलेंस

म्याना जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचाययों में से एक साथ ही जिसके चारों ओर लगभग 30 से 40 गांव जुड़े हुए है परंतु म्याना में स्वस्थ के नाम पर केवल लीपा पोती ही होती रहती है , एक ओर सरकार स्वस्थ सेवाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है परंतु जमीनी हकीकत शून्य दिखाई दे रही है , हम आपको बताना चाहेंगे कि म्याना जिले की सबसे बड़ी पंचायत में से एक है यहां स्वस्थ व्यवस्था पूरी तरह से चौपट है न यहां मरीज को किसी प्रकार का कोई सही ढंग पूर्वक इलाज है न ही कोई अन्य सुविधा, ओर तो ओर समय पर लाने ओर ले जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था भी नहीं है , मिल जानकारी के अनुसार कल दोपहर लगभग 2 से 3 बजे सेंदुआ निवासी सीताराम ओझा उम्र लगभग 40 साल को अपने घर पर चक्कर आए जिसके बाद ग्रामीण जनों की मदद से उसके म्याना स्वस्थ केंद्र पर लाया गया जहां पर उसे उचित उपचार नहीं मिल सका और सीधा गुना रैफर करने की बोलने लगे ,जब परिजन ओर ग्रामीणों ने एंबुलेंस की बोला तो लगभग 30 से 40 मिनिट तक पूरा स्टाफ मरीज एवं उनसे परिजन को झूठा आश्वाशन देते रहे आ रही है आ रही है , अंततः मरीज की हालत बहुत ही खराब होती दिखाई दे रही थी इसी दौरान ग्रामीणों ने जल्द सीताराम ओझा की हालत को देखते हुए निजी वाहन उपलब्ध करवाया जिसे गुना रैफर किया किन्तु उसे प्राथमिक उपचार समय पर सही नहीं मिल पाने के कारण उसने रस्ते में ही दम तोड़ दिया और गुना जाकर जिला अस्पताल ने उसे मृत घोषित कर दिया गया म्याना में छोटी से छोटी घटना भी घटती है तो उसे सदैव गुना रैफर करने की ही अस्पताल प्रबंधन बोलता है
*नहीं है रैफर करने कोई एंबुलेंस*

जब हमारे रिपोर्टर ने अस्पताल में मौजूद डॉक्टर सुरभि से बात की तो उन्होंने बताया कि म्याना में कोई एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध नहीं है मरीज की हालत ज्यादा ही क्रिटिकल थी हमने गुना से भी एंबुलेंस मंगवाने की कोशिश की परंतु गुना से भी एम्बुलेन नहीं आ सकी जिसके कारण हमने परिजनों को स्वयं व्यवस्था करने के लिए कहा कि वे निजी वाहन से मरीज को गुना ले जाएं पूरा मसला ये घटा ही अधिक समय तक एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण सीताराम ओझा की जान चली गई
*अकेला था सीताराम घर का भरन पौषण करने वाला*
मृतक सेदुआ निवासी सीताराम ओझा घर में अकेला मेहनत मजदूरी करके घर का लालन पालन करने वाला था, उसकी मृत्यु होने के बाद घर में कोई संचालन करने वाला नहीं है मिली जानकारी अनुसार सीताराम के एक लड़का है परन्तु वह भी मंद बुद्धि का है उसकी माता जो कि लकवा का शिकार है ,उनकी घरवाली भी मरीज है जिसका इलाज मृतक बड़ी मुस्किल से उठा रहा था उसके 2 लड़कियां है जो शादी के लायक है,मृतक के पास मजदूरी के अलावा किसी प्रकार का कोई साधन भी नहीं था सिस्टम की गलती के कारण सीताराम ओझा की जान चली गई
*न डॉक्टर्स न स्टाफ समय पर मिलता*
अस्पताल में आने जाने वाले मरीज बताते है कि अस्पताल में डॉक्टर्स समय पर नहीं मिलते साथ ही स्टाफ भी समय पर नहीं मिलते घंटों इंतजार के बाद डॉक्टर्स मिलते है और जब इलाज करते है तो दवाएं भी बाहर की लिख देते है
*कागजों पर डॉक्टर्स एवं स्टाफ अधिक परन्तु मौके पर मिले केवल तीन*
जब ये घटना हुई तो म्याना स्वस्थ केंद्र पर केवल एक डॉक्टर्स एवं एक नर्स के साथ मात्र एक अटेंडर मिला ओर बाकी सभी छुट्टी पर है बोला गया
*पूर्व मंत्री के प्रयास से मिली बड़ी बिल्डिंग परन्तु चालू नहीं

पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया द्वारा म्याना को 30 बेड का एक आवासीय अस्पताल दिया गया फिर भी इसमें किस तरह कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं क्योंकि अस्पताल में ताला लगा हुआ है और कोई उसका चार्ज लेने के लिए तैयार नहीं हैं सरकार ने ग्रामीणों को अच्छी व्यवस्था को सोचकर इतना बड़ा अस्पताल मंजूर किया था परन्तु बनकर तैयार तो है पर ग्रामीणों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है,
किसने क्या कहा
म्याना में एंबुलेंस नहीं है गुना से मंगवा रहे थे कोशिश की परंतु गुना से नहीं आई इसलिए हमें निजी वाहन से गुना रैफर करवाने के लिए परिजनों से बोला गया क्योंकि मरीज की हालत ज्यादा ही क्रिटिकल थी

सुरभि डॉक्टर म्याना
हम मरीज को 2 बजे लेकर आए चक्कर आए थे लेकर आए तब इतनी हालत खराब नहीं थी लेकिन सही समय पर उपचार नहीं मिल पाने के कारण उसकी हालत खराब होती गई एंबुलेंस भी नहीं उपलब्ध हो पाई बाद में कहा अपने साधन से ले जाओ













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