हरदा उड़ान फेलोज की सलोनी ने जलाए शिक्षा के दीप, सलोनी की पहल पर जलने लगे शिक्षा के दीप।
हरदा जिले के ग्राम काकरिया में शिक्षा को लेकर उम्मीद की किरण भी नही थी, वहा के अंधियारे गलियारों में
शिक्षा से संबंधित दिमागी कसरत, व्यक्तिगत जुड़ाव, सूचनाओं का आदान प्रदान कर वास्तविक जीवन में अप्लाई करना और जोड़ने को लेकर एक प्रेरणा के रूप में सलोनी की तस्वीर अपने आप उभरने लगती है।जो लड़किया और महिलाए मजदूरी पर जाती है, और देर रात को घर के कामों से थोड़ा ब्रेक लेती है उनके लिए सलोनी ने शिक्षा पर सत्र लिया , देर रात की कोशिश , फिर लड़कियाँ आई बड़ी मुश्किल से उनको उड़ान के बारे में सिनर्जी संस्थान के बारे में काफी समझाया, बहुत देर तक कोशिश की फिर सत्र का मौका मिला और शिक्षा पर सवाल पूछते हुए सत्र शुरू किया महिलाओं ने उसे देख कर के एक के बाद एक आना शुरू किया, फिर घेरा बना कर बैठ गईं ,
बात सुनने की कोशिश की और उन्होंने खुद अपने मन से सलोनी से सवाल पूछा कि वो क्या काम कर रही है और इससे फायदा ही क्या है? उनके सवालों के जवाब बहुत अच्छे से दिए गए ताकि ग्राम में फैली अज्ञानता को दिशा मिल सके ,बंदिशों को तोड़कर लड़किया खुद के बारे में सोच सके।सारी गतिविधियां अच्छे से करवाई, उनके परिचय से संबंध रखने वाली और खुद से प्रेम करने की कला को प्रयोग करते हुए,व्यक्तिगत जुड़ाव बनाया ,खुद में बदलाव फिर फैमिली में टकराव से बाहर निकलकर ,समाज में फैमिली सहित जगह बनाने की कोशिश की।जब कोई बच्ची पढ़ने में रुचि नहीं लेती तो शादी के बंधन में बांध कर उन्हे जिम्मेदारियों से बांधने की कोशिश की जाती है, लेकिन मजदूर वर्ग से लेकर किसी भी कार्य को करने के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है ,साथ ही सोसाइटी को ये बात समझना भी जरूरी है किसी भी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन सिर्फ शादी करवा देना नही होता है ताकि मार्केट, खरीदारी, बिजनेस, नौकरी , मजदूरी में भी हमें कोई बेवकूफ न बना सके।पढ़ाई की,सिलाई सीखने की या किसी भी बिजनेस की क्लास लेने हेतु एक शहर से दूसरे शहर या गांव जाने की इजाजत भी नहीं है लड़कियो को ,जबकि देश को आजादी मिले वर्षो बीत चुके है,माता-पिता बच्चों को स्कूल नहीं भेजते, यह भी बात की सलोनी ने अपनी टीम मेंबर डॉक्टर दर्शना से और फिर प्लान बनाया ,ताकि उड़ान टीम के द्वारा सहयोग मिलते रहे ताकि तमाम निराशाओं के उपरांत भी एक्शन लिया जा सके।जब गांव में बार बार प्रयास करने पर भी विचार व्यक्त करने की जगह सलोनी को नही मिली तो टीम मेंबर तरन्नुम द्वारा भी यही कहा गया कि अपने ही गांव के समीप वाले किसी गांव में भी जागरूकता की जा सकती है। काकरिया से खमलाए ग्राम की दूरी मात्र दो किलोमीटर है ,इस कारण सलोनी ने दोनो ही ग्रामों के बच्चो,टीचर्स और महिलाओं से एक आत्मिक विचार धारा का संयोग या समावेश बनाया जिसके जरिए आज सलोनी को एक पहचान के रूप में देखा जा रहा है। उड़ान की टीम लिया श्रुति द्वारा भी फेलोज को और टीम को समय समय पर गाइडेंस दिया जाता है।
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