उज्जैन इकबाल उस्मानी की कलम से एक आठ दस साल की मासूम सी गरीब लड़कीं पहुंची बुक स्टोर

उज्जैन इकबाल उस्मानी की कलम से एक आठ दस साल की मासूम सी गरीब लड़कीं बुक स्टोर पर चढ़ती है और एक पेंसिल और एक दस रुपए वाली कापी खरीदती है और फिर वही खड़ी होकर कहती है अंकल एक काम कहूँ करोगे ?

जी बेटा बोलो क्या काम है ?
अंकल वह कलर पेंसिल का पैकेट कितने का है, मुझे चाहिए, ड्रॉइंग टीचर बहुत मारती है मगर मेरे पास इतने पैसे नही है, ना ही माँ-बाबा के पास है, में आहिस्ता-आहिस्ता करके पैसे दे दूंगी।

शॉप कीपर की आंखे नम है बोलता है बेटा कोई बात नही ये कलर पेंसिल का पैकेट ले जाओ लेकिन आइंदा किसी भी दुकानदार से इस तरह कोई चीज़ मत मांगना, लोग बहुत बुरे है, किसी पर भरोसा मत किया करो।

जी अंकल बहुत बहुत शुक्रिया में आप के पैसे जल्द दे दूंगी,
और बच्ची चली जाती है।
इधर शॉप कीपर ये सोच रहा होता है,, की अगर ऐसी बच्चियां किसी वहशी दुकानदार के हत्ते चढ़ गई तो “मनीषा” “आसिफा” का हाल हमे याद है।

टीचर्स से गुजारिश है की अगर बच्चे कोई कापी पेंसिल कलर पेंसिल वगैराह नही ला पाते तो जानने की कोशिश कीजिये के कही उसकी मजबूरी उसके आड़े तो नही आ रही। और हो सके तो ऐसे मासूम बच्चों की पढाई की छोटी जरूरतें आप टीचर मिल कर उठा लिया करें।💐

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