स्वयं होती थी आरती ,घंटियों की सुनाई देती थी आवाज मां काली, लक्ष्मी व सरस्वती के रूप में प्रकट हुई थी माताजी पिंड रूप में देती है दर्शन, अनादि काल से विराजित है यहां

मनावर से शकील खान

स्वयं होती थी आरती ,घंटियों की सुनाई देती थी आवाज मां काली, लक्ष्मी व सरस्वती के रूप में प्रकट हुई थी माताजी पिंड रूप में देती है दर्शन, अनादि काल से विराजित है यहां

   मनावर / मनावर से करीब 4 किलोमीटर दूर बड़वानी मार्ग पर ग्राम देदला से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर प्रकृति की सुंदर वादियों में पहाड़ों के बीच मां काली, मां लक्ष्मी ,व मां सरस्वती पावागढ़, वैष्णो देवी, व बिजासन माता जी के तर्ज पर यहां बेकुल के पेड़ के नीचे पिंड रूप में अनादिकाल से साक्षात विराजित है।

    कहते हैं कि पूर्व में यहां घना जंगल होकर शेर ,चीता, भालू आदि जंगली जानवर विचरण करते थे ।यहां कोई आता जाता नहीं था ।तब यहां पर माता जी की स्वयं आरती होती थी। जंगलों के करीब निवास करने वाले लोगों को प्रातः 4:00 बजे ब्रह्म मुहूर्त में घंटी की आवाज सुनाई देती थी।

    डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इस स्थान का चला था पता _____90 वर्षीय ग्रामीण पुरुषोत्तम पटवारी, भूपेंद्र पाटीदार ,रामाभाई मराठा, सुखदेव मुकाती ,मुकेश, चौकीदार मांगीलाल , मोरार मुकाती व अन्य ग्रामीण बुजुर्गों ने बताया कि यह देवी पिंड कब और कैसे प्रकट हुए इसके बारे में तो जानकारी नहीं है। करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ग्राम की महिला जतनबाई मुकाती ग्राम से गायब हो गई थी। करीब एक सप्ताह बाद जब वह लौटी तो उसने इस स्थान के बारे में बताया और कहा कि मैं सप्ताह भर वही रही थी ।तब से इस स्थान पर ग्रामीणों का आना-जाना शुरू हुआ और तभी से इस ग्राम की दशा और दिशा दोनों बदल गई। बाद में सन 1998 में पूर्व सांसद गजेंद्रसिंह राजू खेड़ी ने यहां मंदिर निर्माण के साथ तालाब निर्माण करवाया तथा ग्राम वासियों ने मिलकर पानी के कुंड का निर्माण कराया।

    यहां कभी पहाड़ो से बहता था झरना, अन्य ग्राम की थी बसाहट_____साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता विश्वदीप मिश्रा ने बताया कि यह बहुत सिद्ध स्थान है। यहां माताजी पिंड स्वरूप में स्वयं प्रकट हुई है। पूर्व में यहां पर पहाड़ों से झरना भी गिरता था तथा मंदिर के समीप एक कुंड था जिसमे हमेशा पानी रहता था ।कालांतर में यह झरना व कुंड दोनों का अस्तित्व खत्म हो गया यहां पर करीब 700 से 800 वर्ष पूर्व एक अन्य ग्राम की वसाहट थी। ग्रामीणों और किसानों को अभी भी उसे ग्राम के अवशेष मिट्टी के बर्तन, कोयला या कभी-कभी चांदी के सिक्के के रूप में खुदाई में दिखाई देते हैं ।

     जो भी आता है खाली हाथ वापस नहीं जाता है_____सामाजिक कार्यकर्ता जयप्रकाश सेन बताया कि यहां हजारों भक्त मान, मन्नत के लिए आते हैं। यहां एक वट वृक्ष है जिस पर लाल कपड़े में नारियल से रोग इत्यादि ,काले कपड़े से भूत, हवा, तंत्र-मंत्र की बाधा एवं सफेद कपड़े से धन, संपदा, विवाद आदि सामान्य मन्नत के लिए नारियल बांधा जाता है। मन्नत पूरी होने पर नारियल को विसर्जित कर दिया जाता है। वही कुंड के जल से स्नान करने से रोग आदि दूर होते हैं।यहां दोनों नवरात्रि एवं गणगौर पर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। अभी भी कभी-कभी ब्रह्म मुहूर्त में ग्रामीणों को घंटी की आवाज सुनाई देती है।

   ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है यह स्थान_____सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र सोलंकी ने बताया कि जब रास्ते के लिए यहां पर पहाड़ी को काटा गया तो यहां तीन गुफाएं भी मिली जो काफी लंबी है। कालांतर में गुफाएं कुछ हद तक पहाड़ों के नीचे दब गई ।ग्रामीणों ने गुफा के अंदर जाने का प्रयास भी किया लेकिन अंधेरे व घुटन के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा। यहां पर एक पुरानी बावड़ी भी है जिसके नीचे कुछ अन्य भाषा में लिखा हुआ है। जिसे इतिहास का अध्ययन करने वाले या जानकार ही समझ सकते हैं। यह कितना प्राचीन है इसका पता केवल कार्बन डेटिंग के जरिए ही लगाया जा सकता है।

  रास्ते का निर्माण कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करें ____वही ग्रामीणों ने मांग की है कि काली माता के उक्त चमत्कारिक स्थान तक पहुंचने का रास्ता बहुत कच्चा व ऊबड़ खाबड़ है ।यदि यहां पर रोड निर्माण कर दिया जाए व इस स्थान पर विकास कार्य से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए तो यहां आने वाले भक्तों को काफी सुविधा उपलब्ध हो सकती है एवं यह स्थान ज्यादा प्रसिद्ध हो सकता है।

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