जहां एक ओर पाश्चात्य संस्कृति ने अपना डेरा जमा रखा है वही भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए आज निमाड़ क्षैत्र में महिलाएं व बालिकाएं संजा उत्सव मनाकर पुरानी संस्कृति के यादें ताजा करवाती है उसी में से एक है संजा उत्सव जो
जहां एक ओर पाश्चात्य संस्कृति ने अपना डेरा जमा रखा है वही भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए आज निमाड़ क्षैत्र में महिलाएं व बालिकाएं संजा उत्सव मनाकर पुरानी संस्कृति के यादें ताजा करवाती है उसी में से एक है संजा उत्सव जो
अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन से सोलह श्राद्ध के साथ एक परंपरागत और सांस्कृतिक उत्सव भी प्रारंभ होता है “संजा उत्सव” जिसे मालवा निमाड़ में बालिकाओं और महिलाओं द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया जाता है,
महिलाओं द्वारा बिना माइक ओर स्पीकर से एक लय-सुर में संजा के गीतों से पूरा मोहल्ला गुंजायमान हो रहा है और लोग उन गीतों का आनंद ले रहे है।
पहले के दिनों में दीवार पर संजा गाय के गोबर से बनाई जाती थी और उस पर फूल पत्तियों से रंग भरे जाते थे,
धीरे धीरे यह परंपरा खतम होती जा रही है और एक पेपर पर प्रिंटेड संजा घर की दीवार पर लगाए जाने लगे है,
प्राचीन परंपरा को पुनः जीवित करने के उद्देश्य से आशा गौराना व महिलाओं द्वारा गाय के गोबर से संजा का कोट किला बनाया और रंगीन पन्नियो से उसे सजाया जो की बहुत सुंदर और आकर्षक लग रहा था, अपनी सखी सहेलियों से साथ “संजा सहेली बाजार में रमे ”
” संजा तू थारा घर जा”
आदि कर्णप्रीय संजा माता की वंदना की, गीतों के पश्चात बाटने वाले प्रसाद का नाम (परी का नाम) भी उपस्थित महिलाओं द्वारा अनुमान लगाकर बताया जाता
संजा माता को गाय के गोबर (हरा गोबर), फूल पत्तियों से बनने वाला कोट किला हमे धर्म के साथ प्रकृति को बचाने और सनातन संस्कृति सहेजने का भी महत्वपूर्ण देता है
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