व्यवहार रुप धर्म का पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है- शांतानंदजी महाराज तारण तरण जैन चैत्यालय में बताया कि आलोचना नही करनी चाहिए,
रायसेन जिले कि तहसील सिलवानी में गलतियां होना स्वाभाविक प्रक्रिया है, गलती करने के बाद उसमें सुधार किया जाना ज्ञानी व्यक्ति की निशानी होती है, लेकिन गलती को ना सुधार कर लगातार गलती करते जाना अज्ञानी कहलाता है, किसी दूसरो के दोषो को बढ़ावा नही देना चाहिए, बल्कि उसके दोषो को छिपाते हुए दोशी को वात्सल्य भाषा में समझा कर गलती सुधारने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
यह उद्गार बाल ब्रम्हचारी शांतानंद महाराज ने व्यक्त किए। वह तारण तरण जैन चैत्यालय में गुरुवार को सुबह के समय उपस्थित समाजनो को अपनी अमृतमयी वाणी का रसा स्वादन करा रहे थे। प्रवचन सुनने बड़ी संख्या में समाजजन मौजूद रहे।
उन्होने बताया कि विचारो व सोच से ही पाप पुण्य का वध्ंा होता है जैसे विचार व सोच होगी बैसे ही परिणती प्राप्त होगी। व्यक्ति को कभी भी किसी के हिंसात्मक कार्रवाही की अनुमोदना नही करना चाहिए ना ही उस हिंसात्मक कार्रवाही की प्रषंसा करनी चाहिए, एैसा करने वाला भी पाप का भागीदार बनता है। जाने अनजाने सभी से गलतियां होती है लेकिन उन गलतियो को सुधारना चाहिए फैलाना नही चाहिए।
उन्होने बताया कि व्यवहार रुप धर्म का पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, पाप का छय होता है। ज्ञान होना अच्छी बात है लेकिन लेकिन निंदा, आलोचना बुराई, चुगली करना अच्छी बात नही होती है, एैसा करने से पाप का बंध होता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में समाजजन मौजूद रहे।
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