महेश गणावा चंद्रशेखर नगर
अलीराजपुर के गौरवशाली इतिहास का एक पन्ना सोरवा से लिखा गया था जब 18वी सदी में अंग्रेजो के दमन के आगे आदिवासियों को भूखे रहने पर मजबुर कर दिया थाए अंग्रेजी हुकूमत ने लगान के नाम पर जमीन छीनने का काम चालू कर दिया था तब सौरवा के योद्धा भील ने अंग्रेजो के खिलाफ जंग का आव्हान कर दिया था।

तत्कालीन आलीराजपुर रियासत में मकरानियों का मुखिया दाद मुहम्मद था। यह उत्साह से भरपूर व्यक्ति था और उसने आलीराजपुर रियासत के क्रांतिकारी छीतू भील,भुवान तडवी और जयसिंह आदि के साथ खानदेश, छोटा उदयपुर और गुजरात से योद्धाओं को अपने साथ मिलाकर अपनी ताकत को और बड़ा लिया था। चूंकि उस समय ब्रिटिश शासन का खुफिया तंत्र मजबूत था आलीराजपुर रियासत के क्रांतिकारियों के विद्रोह से डरकर ब्रिटिश शासन का राजनीतिक अभिकर्ता मेजर जोन ने ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आनेवाली मध्य भारत की सेना ( कॉप्स) के साथ घोड़ों पर सवार होकर भालों और असा-शस्त्र से लैस होकर अलीराजपुर राज्य के क्रांतिकारियों के विरुद्ध एक अभियान चलाया। सोरवा की घाटी पर ब्रिटिश सैनिकों और दाद मुहम्मद के क्रांतिकारियों के मध्य एक भंयकर युद्ध हुआ, जिसमें छीतू भील के नेतृत्व में भील योद्धाओं ने भी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष किया और आलीराजपुर रियासत में राणा की हुकूमत को वापस राजगद्दी दिलाने के लिए अभियान भी चलाया। परंतु आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश सेना ने इस अभियान के प्रमुख दाद मुहम्मद की हत्या कर दी जिसके परिणामस्वरूप क्रांतिकारियों का विद्रोह समाप्त हो गया। इसके बाद आलीराजपुर रियासत के प्रमुख क्रांतिकारी जीतू सिंह, छीतू भील और भुवान को छोड़कर अन्य सभी विद्रोहियों को माफी दे दी गई।
छीतू किराड़ और भुवान ठिकाने से जम्बू घोड़ा नामक स्थान की और निकल गए और वहां क्रांतिकारियों को एक करने लगे। परन्तु ब्रिटिश शासन के सैनिको ने उन्हें पकड़ लिया और इंदौर में कैद के लिए भेज दिया गया। जहाँ बंदीगृह में उन्हें घोर यातनाएं दी गई थी। वहीं फूलमाल के ठाकुर जीतसिंह गुजरात की और चले गए जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।










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