मृत्यु के भय पर विजय का मंत्र के साथ ग्राम नाहरखेड़ा में अनमोल श्री जी ने खोली राजा परीक्षित के मोक्ष की गाथा

राजेश माली सुसनेर

मृत्यु के भय पर विजय का मंत्र के साथ ग्राम नाहरखेड़ा में अनमोल श्री जी ने खोली राजा परीक्षित के मोक्ष की गाथा

व्यक्ति को अपनी मृत्यु का क्षण भले ही ज्ञात न हो, पर यह सत्य निश्चित है : कथावाचक अनमोल श्री दीदी

सुसनेर। जनपद पंचायत सुसनेर के समीपस्थ ग्राम नाहरखेड़ा में चल रहे भव्य श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में अंतर्राष्ट्रीय कथावाचिका सुश्री अनमोल श्री जी की अमृतवाणी लगातार ज्ञान की वर्षा कर रही है। कथा के दूसरे दिवस पर उन्होंने श्रीमद् भागवत महापुराण के मूल आधार— सुखदेव महाराज द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई गई मोक्षदायिनी कथा का वर्णन किया। जिसने श्रोताओं को जीवन के अंतिम सत्य का बोध कराया।

कथावाचिका अनमोल श्री जी ने कथा का आरंभ करते हुए राजा परीक्षित के जन्म, उनके शासनकाल और उनके जीवन की उस निर्णायक घटना का वर्णन किया। जिसके कारण उन्हें भागवत कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

कथावाचक ने ‘परीक्षित’ शब्द का अर्थ बताते हुए कहा कि राजा परीक्षित का जीवन हर मनुष्य के लिए एक दर्पण है। जैसे उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी मृत्यु सातवें दिन होनी निश्चित है, वैसे ही हर व्यक्ति को अपनी मृत्यु का क्षण भले ही ज्ञात न हो, पर यह सत्य निश्चित है। राजा परीक्षित ने मृत्यु के भय से भागने के बजाय, उसे ज्ञान और वैराग्य में बदलने का निर्णय लिया। उनकी यही तीव्र जिज्ञासा भागवत कथा का मुख्य आधार बनी।

गुरु-शिष्य परंपरा का अनुपम उदाहरण:

सुश्री अनमोल श्री जी ने बताया कि किस प्रकार शुकदेव महाराज ने केवल सात दिनों में राजा परीक्षित को भागवत ज्ञान का अमृतपान कराकर, उन्हें तक्षक नाग के दंश से पूर्व ही मोक्ष प्रदान कर दिया।

  प्रश्न की शक्ति: अनमोल श्री जी ने बताया कि परीक्षित का प्रथम प्रश्न कि “जिसकी मृत्यु निकट हो, उसे क्या करना चाहिए?” ही भागवत कथा की उत्पत्ति का कारण बना। यह प्रश्न आज भी हर मानव के लिए प्रासंगिक है।

  सात दिन का सत्संग: उन्होंने ‘सात दिवसीय कथा’ की महत्ता समझाते हुए कहा कि यह सात दिन, जीवन के सात पड़ावों और सात पापों को शुद्ध करने का अवसर देते हैं। शुकदेव जी ने एक पल भी व्यर्थ न गंवाते हुए, राजा को सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान प्रदान कर दिया।

   कथावाचिका ने बताया कि कथा श्रवण के अंतिम क्षणों में राजा परीक्षित ने तक्षक के भय को त्याग दिया था। क्योंकि वे जान चुके थे कि आत्मा अजर-अमर है। उनका यह निर्भय वैराग्य ही उनकी मुक्ति का कारण बना।

 कथा का आध्यात्मिक एवं व्यवहारिक सन्देश

कथा पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं ने इस ज्ञानवर्धक वर्णन को पूरी तन्मयता से सुना। अनमोल श्री जी ने अपने प्रवचन के माध्यम से सभी को यह प्रेरणा दी कि जीवन में समय को व्यर्थ न करें, बल्कि इसे भजन, सत्संग और सेवा में लगाएं।

“जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह नहीं है कि आपने कितना धन कमाया, बल्कि यह है कि आपने अपनी मृत्यु को कितनी सहजता और ज्ञान के साथ स्वीकार किया। भागवत कथा हमें इसी स्वीकार्यता और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाती है।

कथा के सुनने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से आए श्रद्धालु, कथावाचिका की अद्वितीय व्याख्यान शैली और कथा के गहन ज्ञान से प्रभावित नज़र आए।

चित्र 1 : ग्राम नाहरखेड़ा में भागवत कथा सुनाती कथावाचक अनमोल श्री दीदी।

चित्र 2 : भागवत कथा में उपस्थित बड़ी संख्या में श्रोता।

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