राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की गूंज से होता है देशभक्ति का संचार
खंडवा भारत का राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ आज भी हर भारतीय के हृदय में जोश और गौरव की भावना जगाता है।बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1870 के दशक में रचित यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशभक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
सद्भावना मंच कार्यालय में गत संध्या संपन्न राष्ट्र गीत की 150 वीं वर्षगांठ पर यह बात संस्थापक प्रमोद जैन ने कही।
सद्भावना मंच के सदस्य कमल नागपाल ने जानकारी देते हुए बताया कि पूर्व डीएसपी आनंद तोमर सहित अन्य सदस्यों ने अपने विचारों में कहा कि ‘वंदे मातरम’ का अर्थ है — “माँ, मैं तेरी वंदना करता हूँ”।यह गीत माँ भारती के प्रति समर्पण, सम्मान और प्रेम का प्रतीक है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय जब-जब यह गीत गूंजा, तब-तब देशवासियों में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हुआ।
आज भी स्कूलों, सरकारी कार्यक्रमों और राष्ट्रीय पर्वों पर यह गीत राष्ट्र के गौरव और एकता का संदेश देता है।भारत की संस्कृति और मातृभूमि के प्रति निष्ठा का यह अमर गीत आने वाली पीढ़ियों को भी देशभक्ति का संदेश देता रहेगा।कुल मिलाकर
‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत ही नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति प्रेम, त्याग और श्रद्धा की भावना का अमर प्रतीक है।सद्भावना मंच के इस आयोजन में संस्थापक प्रमोद जैन,उपाध्यक्ष आनंद तोमर, डॉ जगदीशचंद्र चौरे,सुरेन्द्र गीते, गणेश भावसार,त्रिलोक चौधरी,सुनील सोमानी,ओम पिल्ले,कमल नागपाल,राधेश्याम शाक्य,अशोक जैन,के बी मनसारे,योगेश गुजराती, विजया द्विवेदी, राम शर्मा, सुभाष मीणा, अशोक पारवानी आदि उपस्थित रहे।भारत माता की जय के जयघोष के साथ समापन से पूर्व देशभक्ति के नगमों की प्रस्तुति भी दी गई।
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