ब्यूरो चीफ नरेन्द्र राय SJ न्यूज़ एमपी
लोकेशन रायसेन

रायसेन।तमाम बस्ते का बोझ कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नीतियां बनाई लेकिन बावजूद इसके स्कूली बच्चों के बैग का वजन बजाय घटाने के नीति का ठोस तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है।नतीजा सामने है मासूम स्कूली बच्चे स्कूलों की सीढ़ियां चढ़ते उतरते समय हांफते है।पीठ दर्द की शिकायतें बच्चे घर पहुंच कर अपने अभिभावकों से करते हैं।लेकिन नतीजा सार्थक नहीं।
जिसका जैसा वेट, उसका वैसा बैग…..
स्कूल बैग का वजन बच्चे के खुद के वजन से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। न्यू एजूकेशन पॉलिसी का अहम हिस्सा है स्कूल बैग पॉलिसी 2020….लेकिन स्कूलों में अभी इसका पालन नहीं हो रहा है। एक जुलाई से सभी तरह के स्कूल पूरी तरह से खुल चुके हैं। नई शिक्षा नीति यानी एनईपी तो लागू हो गयी है। लेकिन कंधों से बस्तों का बोझ कम नहीं हुआ है।
ये होना चाहिए बस्ते का वजन…..
भा रत सरकार की नई बैग पॉलिसी के अनुसार प्री प्राइमरी क्लासेस में बच्चों को बैग ले जाने की जरूरत नहीं है। कक्षा-1 व 2 में 1.6 से 2.2 किलो तक के वजन का ही बैग ले जाएंगे।
कैसा हो स्कूली बैग
कक्षा बस्ते का वजन….
अभी यह है हाल
अब तक निरीक्षण नहीं
सितंबर 2022 से लागू नई बैग पॉलिसी के तहत हर तीन महीने में जिला शिक्षा अधिकारियों को स्कूलों में बस्ते के वजन का औचक निरीक्षण करना था। लेकिन कोई निरीक्षण या जांच नहीं हुई है।
पहली क्लास की रायमा,आशु के बैग का वजन 5 किलो है। उसका वजन 17 किलो है। स्कूल बैग लेकर चलने में वह काफी हांफते है। स्कूल से लौटने पर पीठ व कंधों में दर्द होता है। यह दर्द अकेले रायमा ,आशु का नहीं, बल्कि हजारों बच्चों का है। जो भारी बस्ते का बोझ लेकर स्कूल जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मानक कहता है बैग का वजन शरीर के वजन का सिर्फ 10 प्रतिशत होना चाहिए।
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