आज गायत्री शक्ति पीठ गुना पर गायत्री जयंती व गंगा दशहरा पर गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के मार्गदर्शन में 12 घंटे का जप, साधना , उपासना ,आराधना

मोहन शर्मा म्याना की खबर

आज गायत्री शक्ति पीठ गुना पर गायत्री जयंती व गंगा दशहरा पर गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के मार्गदर्शन में 12 घंटे का जप, साधना , उपासना ,आराधना के साथ सुबह 5 कुण्डिय यज्ञ और भिविन संस्कार करये गये जिले के मिडीया प्राभरी सुनील सेन वतया है कि *गायत्री जयंती – गंगा दशहरा – भागीरथी – युगऋषि*

ज्ञान गंगा गायत्री और अमृत जल की गंगा इन दोनों के अवतरण का आज का पावन दिन गायत्री जयंती और गंगा दशहरा है। माँ गंगा तो स्वर्ग में पहले से ही थीं, पर उनको मानव जाति के कल्याण के लिए धरती पर लाना सिर्फ संकल्प बल के धनी भागीरथी ही कर सकते थे। माँ गायत्री भी धर्मग्रन्थो और स्वर्गलोक में पहले से ही थीं पर उनको मानव जाति के कल्याण के लिए। जन जन तक सुलभ कराया युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने। भागीरथी जी और युगऋषि जी दोनों की मन्ज़िल मुश्किल थी लेकिन संकल्प बल महान था, कठोर तप दोनों ने किया और असम्भव को सम्भव कर दिया।

24 वर्षो तक 24-24 लाख के गायत्री जप के महापुरुश्चरण बिना नमक बिना चीनी बिना घी खाये, सिर्फ गाय के दूध से बने छाछ और गोबर से परिष्कृत जौ की दो रोटी नियमित खा के किया। हम एक दिन आस्वाद में दुःखी हो जाते हैं और युगऋषि ने 24 वर्षों तक आस्वाद किया। स्वाद छोड़ा और स्वार्थ छोड़ा परमार्थ और जनकल्याण के लिए हिमालय में कई वर्षो की कठोर साधना कर के माँ गायत्री को प्रशन्न किया। माँ प्रशन्न हुई अपने प्रिय भक्त पर। हिमालय से आकर युगनिर्माण योजना का अभियान और विचार क्रांति अभियान शुरू किया। जितना बड़ा नाम उतना बड़ा ही काम था। लक्ष्य कठिन पर युगऋषि भागीरथी की तरह अटल थे और उनका साथ दे रही थीं माँ भगवती जो उनके साथ साथ ही तप में रत थी। दोनों ऋषि युग्म ने तपशक्ति और प्यार से गायत्री परिवार की आधारशिला रखी। ज्ञान की मशाल ले कर अन्धकार को ललकारा और गायत्री साधना से जनमानस को जोड़ दिया। ज्ञान गंगा गायत्री का अवतरण उनमें कर दिया। जनमानस के मार्गदर्शन हेतु 3200 से अधिक साहित्य का सृजन किया। जितना हम उम्र भर पढ़ नहीं सकते उतना वो लिख कर चले गए। वेद, पुराण, उपनिषद इत्यादि पुराणों का हिंदी भाष्य किया। साथ ही प्राचीन योग आयुर्वेद पर भी अतुलनीय कार्य किया। यज्ञोपैथी से दुनियां को परिचित करवाया। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय जैसा भारतीय संस्कृति रक्षक सृजन सैनिक गढ़ने के केंद्र बनाया। ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान में धर्म पर वैज्ञानिक रिसर्च करवाया। अखण्डज्योति पत्रिका के माध्यम से जन जन को धर्म का वैज्ञानिक विश्लेषण कर समझाया। सतयुग की वापसी का आधार भाव सम्वेदना की गंगोत्री को बताया। एक तरफ़ ज्ञान की मशाल जलाई तो दूसरी तरफ़ प्यार स्नेह की गंगोत्री से हमे भाव विह्वल कर तृप्त कर दिया।

ज्ञान की मशाल की ज्योति से युवाओं को प्रज्ज्वलित कर छोटे छोटे प्रकाश के सिपाही तैयार किये, जिन्हें हम युगनिर्मानी, युगशिल्पी, दिया(DIYA – Divine India Youth Association) कहते हैं।

सप्त आंदोलन और शत् सूत्रीय कार्यक्रम के माध्यम से मनुष्य में देवत्व और धरती पर स्वर्ग अवतरण का अभियान चलाया।

ऋषि कृष्णानन्द और देबरहा बाबा भी युगऋषि को नमन करते थे। उस समय के सभी योगी ऋषि जैसे आर्य समाज आनंद स्वामी, कनखल आश्रम की माँ आनंदमयी सभी उनकी प्रशंशा करते नहीं थकते थे।

डॉ राधाकृष्णन जी और विनोबा भावे ने इसलिए युगऋषि को वेदमूर्ति के उपनाम से नवाजा। भारत सरकार ने युगऋषि के स्वतन्त्रता सेनानी के लिये डाकटिकट ज़ारी किया। हम सभी भागीरथी के ऋणी हैं माँ गंगा के लिए और युगऋषि के ऋणी हैं माँ गायत्री ज्ञान गंगा के अवतरण के लिए। आज गायत्री जयंती के अवसर पर हम सभी अपनी श्रद्धा सुमन माँ गायत्री और युगऋषि के चरनों पर अर्पित करते हैं। सागर को गागर में भरने का प्रयास सम्भव नहीं है लेकिन एक बूँद की झलक प्रस्तुत की है।

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