43वां स्थापना दिवस राजनीति के सांस्कृतिक बदलाव की धुरी बनी भाजपा-विष्णु दत्त शर्मा

मोहन शर्मा Sj न्यूज़ एमपी गुना

1980 के दशक का कालखंड भारतीय राजनीति का टर्निंग प्वाइंट था, जब जनसंघ के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। स्वाधीनता मिले अभी तीन दशक ही हुए थे कि देश भ्रष्टाचार, परिवारवाद, अपराधीकरण, जातिवाद, तुष्टिकरण, आतंकवाद और आपातकाल जैसे घावों से छलनी होने लगा था। किसे पता था कि आजादी के बाद जिन्होंने राजनीति का उत्तराधिकार पाया, वे अपनी स्वार्थलिप्सा में इतने कम समय में देश को बर्बादी के कगार पर पहुंचा देंगे।वे सत्ता में बने रहने के लिए तुष्टिकरण का ऐसा भ्रमजाल फैलाएंगे कि राष्ट्रीय अस्मिता भी धूमिल हो जाएऔर राष्ट्र की सच्ची पहचान उनके क्षुद्र राजनीतिकनारों से नष्ट हो जाएगी। परन्तु तत्कालीन राष्ट्रवादी समूहों को इसका भान हो गया था और वे भारतीय राजनीति को सही दिशा देने व एक सम्यक विकल्प देने के लिए आगे आए,तब भाजपा की स्थापना हुई।

थोड़ा गहराई में विचार करनेसे पता चलता है कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी राजनीतिक दलों ने वोट बैंक की गुलामी की एक विशेष चादर ओढ़ ली थी। उनदिनों भारत में भारतीयता की बात करना भी जैसे अपराध होता था। भारत में भारतीय संस्कृति, आध्यात्म, धर्म और उसके विविध विषयों की चर्चा को सांप्रदायिक ठहराया जाता था। ऐसी परिस्थिति में भारत की राजनीति को भारतीयता की ओर उन्मुख करने और उसके सांस्कृतिक सरोकारों कोराजनीति का केंद्र बनाने के लिए भाजपा की नींव पड़ी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विराट विचार को लेकर 1980 में आज ही के दिन भारतीय जनता पार्टी की विधिवत स्थापना हुई थी। जिसका एक बड़ा लक्ष्य था, भारत की एकात्मता को बचाना। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के द्वारा देश को खंडित होने से बचाने के लिए एकात्म मानववाद के मूल दर्शन पर चलना। एक ऐसा दर्शन जो मनुष्य और समाज के बीच कोई संघर्ष नहीं देखता, बल्कि मनुष्य के स्वाभाविक विकास-क्रम और उसकी चेतना के विस्तार से परिवार, गाँव, राज्य, देश और सृष्टि तक उसकी पूर्णता देखता है। अन्य दलों की तरह भारत को नेशन स्टेट की तरह देखने की बजाय भाजपा ने इसे राष्ट्र माना और कहा कि इसका राष्ट्रवाद सांस्कृतिक है केवल भौगोलिक नहीं।

भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अन्तर्गत गरीबी मिटाना केवल नारा नहीं, उसका संकल्प था। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कोई भाषण नहीं, प्रतिबद्धता थी। कश्मीर में 370 की समाप्ति चुनावी जुमला नहीं, राष्ट्रीय एकात्मताका साक्षात संकल्प था। अब से चार दशक पहले बनी भाजपा के लिए अन्त्योदय स्लोगन नहीं, यह गरीबों का जीवन स्तर ऊंचा करने का सपना था, जिसे पार्टी के किसी भी नेतृत्व ने कभी भी देखना नहीं छोड़ा। 1980 से लेकर अब तकभाजपा के सभी नेतृत्वकर्ता इस सपने को पूर्ण करने में सक्रियरहे हैं। वे उन संकल्पों को साकार करने के लिए दिन-रात अपना श्रेष्ठतम समर्पित करते रहे हैं।वे भावी पीढ़ी को भी इन संकल्पों को साकार करने का सामर्थ्य देते हैं। शोषणमुक्त,समतायुक्त समाज की स्थापना भाजपा का चुनावी मुद्दा नहीं है, यह इसकी मूल दृष्टि है।

भारत के सांस्कृतिक मानबिन्दुओं की रक्षा हो, भारत की अखंडता का प्रश्न हो अथवा समाज को समरस रखने की चुनौती हो, सभी मुद्दों पर भाजपा विगत चार दशक से अबाध रूप से अपना संकल्प सिद्ध करती आ रही है। अपने सिद्धांतों पर चलते हुए पार्टी आज 43 साल की यात्रा पूरी कर रही है। इस यात्रा में अनेक बाधाएँ व कठिनाइयां भी आयी हैं परन्तु पार्टी अपने सिद्धांतों व आदर्शों पर अडिग रहते हुए आगे बढ़ती रही है। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और उसकी मूल भावना का पालन करते हुए पार्टी ने देश के सभी हिस्सों में जनता का अटूट विश्वास हासिल किया है। आज लोकसभा में 303, राज्यसभा में 93, एमएलए 1420, एमएलसी 150 सहित 16 राज्यों मेंभाजपा नीत सरकारेंहैं। यह इस बात का प्रमाण है कि सारे देश ने एक दल की विचारधारा को समादृत किया है औरभाजपा के राष्ट्रवादी चिंतन से लोग जुड़ते जा रहे हैं। इसलिए स्थापना दिवस के प्रसंग में चुनावी हार जीत के आंकड़ों को दरकिनार कर भाजपा के वैचारिक विस्तार को देखना समीचीन होगा।

सन् 1980 में स्थापित पार्टीतीन दशक के अल्पकाल में ही स्वाधीनता पूर्व के दलों का राष्ट्रीय विकल्प बन गई। साथ ही उन क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व तोड़ने में भी कामयाब हुई, जिन्होंने सामाजिक न्याय की आड़ में परिवारवाद, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट और वोट बैंक की राजनीति को ही अपना धर्म बना लिया था। लोक लुभावन वादों की क्षणिक व स्वार्थ भरी राजनीति को भी नकारने में भाजपा ही विकल्प बनी है।पार्टी को जब-जब अवसर मिला है उसने समस्याओं के स्थाई समाधान पर ध्यान दिया है।

स्थापना के 34 वें साल में जब 2014 में देश ने श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा पर पूरी तरह भरोसा जताया, तब से भाजपा सरकार अपने सभी वादों को एक एक करके पूरा करती आ रही है। श्रीराम मंदिर निर्माण करने, कश्मीर से 370 हटाने के साथ-साथ भारत के सांस्कृतिक आध्यामिक ढांचे के युगानुकूल विकास के कार्यों को भी अमलीजामा पहना रही है। आज भारत की एकात्मता के लगभग सभी तीर्थ केंद्र विकास का नया प्रतिमान गढ़ रहे हैं। सात दशक से उपेक्षा का दंश झेल रहे हमारे आध्यात्मिक केंद्र राष्ट्रवादी दल की सरकार की प्राथमिकता में शामिल हुए हैं और अबउनका गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है।

दरअसल, भाजपा ने चार दशक में देश की राजनीतिक संस्कृति को बदल दिया है। एक ओर जहां परिवारवादी, तुष्टिकरण और जातिवादी राजनीति का दौर समाप्त हो गया, वहीं अब धर्म-संस्कृति की बात करना सांप्रदायिक होना नहीं है। राष्ट्रवाद की चर्चा अब संकुचित मानसिकता का परिचायक नहीं है। सरकार की ओर से देवालयों का विकास करना, अब ध्रुवीकरण नहीं है। भारतीयता की बात करना और मातृभाषा में काम करना अब पिछड़ापन नहीं है। हिन्दुत्व का विचार अब सर्वग्राही बन गया है। अपनी प्रखर व प्रतिबद्ध कार्यशैली से भाजपा ने देश के राजनीतिक विमर्श को परिवर्तित करने में ऐतिहासिक सफलता पायी है।इस पड़ाव पर भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, एकात्म मानववाद तथा अपनी पंचनिष्ठाओं की नींव पर गर्व से खड़ी है।

आजादी के बाद भ्रष्टाचार का घुन कब दानव बन गया पता ही नहीं चला। सभी दल भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे हुए नजर आने लगे। पिछले नौ साल में भाजपा की मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने का जो अभियान चलाया है, उसका असर सारा देश देख रहा है। भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी व्यक्ति मोदी सरकार में बच नहीं सकता। सैकड़ों जेबों से होकर गुजरने वाला सरकारी धन अब सीधे गरीब के खाते में पहुंच रहा है। बिना कटौती अनाज का एक-एक दाना गरीब आदमी की झोली में जा रहा है। बिना रिश्वत के गैस कनेक्शन, प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान कार्ड सहित अनेक योजनाएँ आम नागरिक तक सीधे पहुंच रही हैं। डिजिटल इकोनॉमी में भारत दो साल में ही अव्वल हो गया है, तो इसका कारण यही है कि लाभ का सही हिस्सा हर खाते में सीधा हस्तांतरित हो रहा है।

वस्तुतः पार्टी नेतृत्व ने सुशासन की संस्कृति से पार्टी के अन्त्योदय के सिद्धांत को आदर्श रूप में जमीन पर उतारा है। पार्टी की सफलता का यही पैमाना है कि इसकी नीतियों का लाभ पंक्ति के अंतिम पड़ाव पर खड़े व्यक्ति को मिल रहा है। समाज के निचले पायदान पर मौजूद व्यक्ति के कल्याणका अर्थ है गरीब, किसान, ग्रामीण, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों सहित सभी वर्गों को सुशासन का लाभ मिले। सबको शिक्षा, सबको स्वास्थ्य, सबको अन्न जब मिलता है तब सच्चे अर्थों में सुशासन का संकल्प परिलक्षित होता है।सुशासन अंततः राष्ट्र के गौरव पथ का मार्ग प्रशस्त करता है, जिस पर भारत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बहुत आगे निकल चुका है।

लेखक भाजपा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष एवं खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।

About Author

Categories: , ,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!