साल था 2021… अभी तो कोरोना की आखिरी लहर खत्म हुई थी। लोग अपनों को खोने के दर्द से उबरने की कोशिश कर रहे थे। दिसंबर की सर्दियों के दिन चल रहे थे। फिर भी गाहे बगाहे मीडिया में कोरोना की एक और लहर की भविष्यवाणी आती जाती रहती थी। इसी बीच 14 दिसंबर को सतना जिले के मुखिया का जिम्मा लेने पहुंचते है कलेक्टर अनुराग वर्मा।जिले को अभी समझ भी नहीं पाए थे कि साल का आखिरी दिन भी आ जाता है। नव वर्ष के उत्साह में कोरोना का दर्द लोगो के चेहरे पर अब भी था। इस सबके बीच 25 लाख की आबादी वाले जिले में 102 बच्चे ऐसे थे जिन्हें कोरोना अनाथ कर गया था। इन बच्चों का बचपन बेरंग हो चुका था, मुस्कान खो चुकी थी। तभी होली का त्यौहार आ गया। लोग रंग अबीर की खरीददारी में जुट चुके थे। लेकिन इससे इतर जिले के सबसे प्रभावशाली घर में कुछ और ही कहानी रची जा रही थी। कलेक्टर बंगले में अनुराग अपने नाम के अनुरूप प्रेम की गहरी भावना में बालरंग को उकेरने की तैयारी में जुटे थे। होली का दिन आ चुका था। सुबह कलेक्टर बंगले में लक्जरी गाड़ियों से सजे धजे बच्चे उतर रहे थे। गिनती हुई तो संख्या 102 थी। जी हां… ये वही अनाथ बच्चे थे जिनके माता पिता को कोरोना लील गया था। आज अवसर था “बालरंग” का, जिसके रंग में ये बच्चे कलेक्टर अनुराग वर्मा के रूप में अपना नया अभिभावक पाने जा रहे थे। फिर क्या था कलेक्टर ने बच्चों के साथ ऐसा रंग गुलाल उड़ाया कि बच्चों के उजड़े रंगों में रंग की नई कोपलों ने जन्म ले लिया। तब से हर त्यौहार इन बच्चों का कलेक्टर बंगले में इंतजार करता था स्नेहिल खुशियों का। अनुराग का ये अनुराग कब उन्हें आम आदमी का खास कलेक्टर बना गया, जानना हो तो उन बच्चों के चेहरे पर आज भी दिखने वाली मुस्कान से पहचाना जा सकता है।
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*सरकारी छात्रों के खिलाड़ी कलेक्टर*
परीक्षाओं के दिन खत्म होने के बाद अखबारों में समर कैंप के कॉन्वेंटिया विज्ञापनों की होड़ लग जाती थी। इनमें अंग्रेजी स्कूलों के क्लास बच्चे समर वैकेशन का मजा लेने जाते थे। तब सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को हिंदी मीडियम वाला एहसास कराती थी इन कैंपों की अखबारों में छपने वाली फोटो। इसे महसूस किया था हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल से पढ़ कर कलेक्टर बनने तक का सफर करने वाले अनुराग वर्मा ने। अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई, सरकारी स्कूलों में समर कैंप की सरकारी व्यवस्था जमने लगी। अब ये कलेक्टर का समर कैंप था जिसमें गिरमिटिया मजदूर का सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा भी जा सकता था। जलवा ऐसा था जो कॉन्वेंटिया समर कैंप को फेल करता था। इस नवाचार ने ऐसा रंग जमाया कि स्कूल शिक्षा विभाग ने अगले बरस से पूरे प्रदेश में सतना मॉडल समर कैंप की शुरुआत कर दी।
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*जमीन के रिकॉर्डधारी कलेक्टर*
दो पड़ोसी जिले, एक ही बैच के ias अफसर और अच्छे मित्र। दोनों जिलों में राजस्व की एक बड़ी समस्या थी सीमांकन। अभियान प्लान हुआ और तय किया गया कि एक दिन में ज्यादा से ज्यादा सीमांकन करके लंबित मामलों को शून्य कर देना है। न बचेगा सीमांकन न होंगे जमीन विवाद। मई का महीना, थपेड़ों वाली लू लेकिन वो 12 घंटे ऐसे रहे कि कलेक्टर से लेकर पटवारी सिर्फ एक काम कर रहे थे “सीमांकन”। काम पूरा हुआ और गिनती सामने आई तो 1552 जमीनों के सीमांकन का रिकॉर्ड बन चुका था। जिसे बाद में एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। उधर मित्र का जिला काफी पिछड़ चुका था। इस रेस में रीवा कलेक्टर हार कर भी जीत का एहसास अपने दोस्त की प्रतिभा पर कर रहीं थीं।
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*चुनाव धारी कलेक्टर*
चुनाव का नाम आते ही जिला निर्वाचन अधिकारी का शब्द जेहन में आता है और बैकग्राउंड पर कलेक्टर की तस्वीर रचने लगती है। लेकिन जब लोक सभा, विधानसभा, पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों की बात होती है तो अलग अलग चेहरे और कहानियां सामने आते हैं। लेकिन अनुराग वर्मा ऐसे बिरले कलेक्टर हैं जिनका चेहरा इन सभी चुनावों में दिखता है। जी इनके नाम ये चारों चुनाव शांति पूर्वक कराने का जिले में रिकॉर्ड है।
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*जन जन के कलेक्टर*
3 साल में अनुराग वो नाम बन चुका था जिसमें सभी अपनी समस्या का हल ढूंढते थे। सत्ता हो या विपक्ष। जो भी नाराज पहुंचा तो कुछ ऐसा मुस्कुराते थे कि वो ठंडा होकर जाते थे। फील्ड में कभी गांव की स्कूलों मास्टर साहब भी बन जाते थे। स्कूल में मास्टर जी की जगह खुद क्लास लेने लगते थे। बाल वस्त्र दान ऐसा चला कि गांवों में गरीब बच्चों के कपड़ो की कमी जाती रही। आर्थिक कमजोर बच्चों के सपनों को उड़ान देने निःशुल्क पीएससी और यूपीएससी क्लास चलवा दी। कलेक्टरी पर आए तो सुप्रीम कोर्ट से हारी हुई 300 करोड़ से अधिक मूल्य की सरकारी जमीन बचा कर ले आए और शीघ्र बेगम केस को री।स्टार्ट मोड में खड़ा कर दिया। लिस्ट तो और है जो काफी लंबी है। लिहाजा इतना ही कहेंगे अनुराग वर्मा ने कलेक्टर की कॉलर को आप जन की बुशर्ट से जोड़ दिया था।
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