ब्यूरो चीफ नरेन्द्र राय SJ न्यूज एमपी
लोकेशन रायसेन

हनुमान जी की पूंछ में राक्षसी सेना ने लगाई आग से लंकापति रावण की सोने की लंका महल में लगाई आग, मची राक्षसी सेना में मची भगदड़

रायसेन।रायसेन शहर चल रही बीस दिवसीय श्रीराम लीला महोत्सव में राम चरित मानस लंका दहन की लीला का स्थानीय युवा कलाकारों द्वारा जोरदार मैदानी मंचन किया गया।वीर बजरंग बली सीता माता की खोज करते हुए समुद्र पार करते हुए रात्रि पहर में लघु रूप धारण कर अशोक वाटिका पहुंचे।जहां माता जानकी राक्षसियों के कड़े पहरे के बीच एक पेड़ के नीचे दुखी अवस्था में मिलीं।स्वामी श्रीराम द्वारा दी गई रामनाम की मुद्रिका अंगूठी पेड़ के ऊपर बैठे हनुमान द्वारा सीता जी के मुख के सामने फेंकते हैं।फिर हनुमान श्रीराम के दास होने का परिचय देते हैं।सीता माता को।लंकापति रावण के चंगुल में कैद से मुक्ति दिलाने का वचन हनुमान सीता माता को देते हैं।सीता माता चूड़ामणि हनुमान को देती हैं।भूख से व्याकुल वीर हनुमान अशोक वाटिका के फुलवारी बाग में लगे फलों को खाने की इकच्छा जताते हैं।माता जानकी का आदेश पाकर वानर स्वभाव के मारुति नन्दन ने पेड़ों से ना बल्कि फलों को खाया।बल्कि फल फूल पेड़ों को उखाड़कर तहस नहस कर उजाड़ डाले।यह सबकुछ होता देख माली ,और अक्षय कुमार सेना सहित पहुंचते हैं।तब हुए युद्ध के दौरान अक्षय कुमार सहित राक्षसी सेना को।एक के बाद एक मार डालते हैं वीर हनुमान।तभी लंकापति दशानन अपने पुत्र इंद्रजीत को हनुमान नामक वीर वानर को पकड़कर लंका दरबार में पेश करने का आदेश देता है।तब इंद्रजीत राक्षसी सेना लेकर नागपाश बाण के चक्रव्यूह में फंसा कर दशकन्दर के सामने पेश करते हैं।लंका दरबार में वीर हनुमान और दशानन के बीच संवाद होता है।
इसके बाद रावण राक्षसी सेना को वीर वानर हनुमान की पूंछ में लगाने का आदेश देता है तो इंद्रजीत और राक्षसी सेना पूंछ में कपड़े लपेटकर आग लगाते हैं।केसरी नन्दन हनुमान पूंछ में लगी आग लंका के महलों की छतों पर उछलकूद कर दहकती आग धूँ धूं कर सारी लंका को चपेट में ले लेती है।इस आग में राक्षसी सेना सहित उनके खाने पीने की चीजें जलकर स्वाहा हो जाती है।राक्षसों में हाहाकार मच जाता है।
इसके पहले श्रीराम लखनलाल वानर राज सुग्रीव बाली पुत्र अंगद हनुमान और जामवन्त वानर भालुओं की सेना के साथ सीता माता की खोज करने दक्षिण दिशा में समुद्र किनारे पहुंचते हैं।वहां जाकर उन्होंने देखा कि समुद्र दूर दूर तक नजर आया।ऐसी स्थिति में सीता माता की खोज कैसे होगी।तब अंजनी पुत्र वीर हनुमान प्रभु श्री राम से बोलते हैं कि भगवान ब्रम्हा द्वारा मुझे जो शक्तियां प्राप्त हो उनके बल से मैं हवाई मार्ग से इस समुद्र को पार कर सकता हूँ।साथ ही मैं माता सीता का पता लगाकर वापस आ सकता हूँ।प्रभु राम हनुमान को राम अपनी अंगूठी देते हैं।समुद्र पार करते जाते वक्त उन्हें लंकिनी डंकनी और बाद में लंका के गेट पर पेहरा देती सुरसा का सामना होता है।वह सभी राक्षसनियों को मार देते हैं।लंका में रात्रि पहर में विभीषण कुटी में बैठे प्रभुराम नाम जपते हैं ।राम का नाम सुनकर हनुमान चौंक जाते हैं।मन में विचार करने लगते हैं राक्षसों के बीच आखिर राम भक्त कौन है।हनुमान जी की भेंट लंकापति दशानन के भाई विभीषण से होती है।










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